लगातार दूसरी बार केंद्र की सत्ता पर पकड़ बनाए रखने के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) एड़ी चोटी का जोर लगा रही है और इसके लिए उसकी सबसे बड़ी उम्मीद उत्तर प्रदेश पर टिकी है. 2014 में नरेंद्र मोदी को सत्ता तक पहुंचाने में इस प्रदेश का अहम योगदान था और इस बार भी बीजेपी इसी राज्य से बड़ी उम्मीद लगाए बैठी है. शायद यही कारण है कि बीजेपी सत्ता विरोधी लहर का ज्यादा असर न पड़े, इसलिए वह अपने कई सांसदों का टिकट काटने में लगी है.
भारतीय जनता पार्टी की ओर से उत्तर प्रदेश के लिए अब तक घोषित किए गए उम्मीदवारों के नामों पर गौर करें तो यह साफ हो जाता है. अब तक दिए गए 60 टिकटों में 20 सांसदों के टिकट या तो काटे गए या बदल दिए गए यानि एक तिहाई बीजेपी के सांसदों पर पार्टी ने सर्जरी की है. अगर बीजेपी की लिस्ट देखें तो 16 सांसदों के टिकट बीजेपी ने काट दिए हैं जबकि चार सांसदों की सीट बदल दी गई है. अभी 20 सीटों पर ऐलान होना बाकी है, हालांकि इन बचे सीटों में से कुछ सीटें सहयोगी दलों के लिए भी हो सकती हैं.
केंद्र और राज्य दोनों जगहों पर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने जिन बड़े सांसदों के टिकट काटे हैं, उनमें कानपुर से सांसद और बीजेपी के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी, देवरिया से सांसद कलराज मिश्रा के अलावा झांसी से सांसद उमा भारती शामिल हैं. इनके अलावा रामपुर से डॉक्टर नेपाल सिंह, संभल से सत्यपाल, हाथरस से राजेश दिवाकर, फतेहपुर से सीकरी बाबू लाल, शाहजहांपुर से कृष्णा राज, हरदोई से अंशुल वर्मा, मिश्रिख से अंजू बाला, इटावा से अशोक दोहरे, प्रयागराज से श्यामा चरण गुप्ता, बाराबंकी से प्रियंका रावत, बहराइच से सावित्री बाई फुले, कुशीनगर से राजेश पांडेय और बलिया से भरत सिंह हैं.
बीजेपी ने 16 सांसदों के टिकट काटने के अलावा 4 सांसदों का लोकसभा क्षेत्र बदल दिया है. पार्टी की ओर से जिन 4 सांसदों के रणक्षेत्र में बदलाव किया गया है, उसमें मेनका गांधी को पीलीभीत से सुल्तानपुर, राम शंकर कठेरिया को आगरा से इटावा, वरुण गांधी को सुल्तानपुर से पीलीभीत और वीरेंद्र सिंह मस्त को भदोही से बलिया भेजा गया है.
हालांकि इन जिन 16 सांसदों के टिकट काटे गए हैं उनमें से झांसी से उमा भारती और देवरिया से कलराज मिश्र ऐसे सांसद हैं जिन्होंने पहले ही चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर दिया था. हालांकि अभी 15 से ज्यादा बीजेपी के कोटे से सीटों का ऐलान होना बाकी है और कई टिकट बचे हुए 20 सीटों में भी कटेंगे, लेकिन जिस तरीके से पार्टी ने टिकट बंटवारे को लेकर सर्जरी की है, उससे साफ दिखता है कि बीजेपी ने सिर्फ जिताऊ उम्मीदवार उतारने की अपनी रणनीति बनाई है और इसी पर काम कर रही है.
5 साल पहले की तुलना में इस बार राज्य में बदले राजनीतिक समीकरण को देखते हुए बीजेपी के लिए इस बार राह आसान नहीं दिख रही है और उसे नई रणनीति बनानी पड़ रही है. बीजेपी में उम्मीदवारों में जिस तरीके से टिकट काटे गए हैं, उससे यही लगता है कि पार्टी के लिए बस एक ही मूल मंत्र बचा है और वह है येन केन प्रकारेण पार्टी की जीत सुनिश्चित हो.